कुछ लोग आम कश्मीरी की तरह दिखते हैं, लेकिन वे आतंकियों की छिपकर मदद करते हैं। ये ओवर ग्राउंड वर्कर्स दुकानदार, चरवाहे, पुलिसकर्मी या कोई भी हो सकते हैं — पहचानना मुश्किल होता है। ये जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की आंख और कान हैं।
ये लोग आतंकियों को खाना, पनाह और जरूरी चीजें देते हैं। पहलगाम में 22 अप्रैल को 26 टूरिस्ट की हत्या के पीछे भी ऐसे ही लोगों का हाथ था। आजकल स्थानीय लोग आतंकियों का साथ नहीं देते, इसलिए आतंकी पूरी तरह ओवर ग्राउंड वर्कर्स पर निर्भर हैं।
आतंकी सीधे गांवों से नहीं जुड़ते, बल्कि जेल में बंद छोटे अपराधियों के जरिए संपर्क बनाते हैं। जेल के अंदर से ही नेटवर्क चलता है जहां मोबाइल और इंटरनेट भी उपलब्ध होता है।
ये लोग आतंकियों को हथियार बिना शक के पहुंचाते हैं। कई बार महिलाएं और बच्चे भी इसमें शामिल होते हैं। ये गांव-गांव फैले रहते हैं और निगरानी रखते हैं कि कौन सेना के साथ है और कौन नहीं।
ये लोग इलाके के रास्तों से लेकर हर जानकारी रखते हैं। छुपने की जगह बताने से लेकर खाना देने वाले तक, सब इस नेटवर्क का हिस्सा हो सकते हैं। पैसों और ड्रग्स के बदले वे आतंकियों की मदद करते हैं और हमलों की साजिशों में अहम भूमिका निभाते हैं।